Sunday, August 7, 2016

046 - भय बिन होय न प्रीत

भगवन राम को मर्यादा पुरषोत्तम कहा गया हैं। वे धर्म और अनुशासन से पूरी तरह बंधे हुए थे। अपनी भक्त वानर सेना के साथ वे समुद्र के किनारे पहुँचे और समुद्र देवता को प्रणाम करते हुए उसे पर करने की अनुमति माँगी, ताकि लंका पहुँचकर सीताजी को रावण से मुक्त कराया जा सके।

श्रीराम को प्रतीक्षा थी कि समुद्र देवता उन्हें अनुमति देंगे, तभी वे आगे कदम बढ़ाएँगे।  एक दिन गुजर गया, दो दिन गुजर गए। तीसरे दिन शाम को उन्होंने फिर प्रार्थना की, पर समुद्र देवता ने कोई जवाब नहीं दिया।

सूर्यास्त होने जा रहा था। राम तो जवाब की प्रतीक्षा थी। वे अपना धैर्य को चुके थे, उन्हें गुस्सा आ गया। उन्होंने अपना धनुष निकल और समुद्र देवता पर हमले के लिए उसकी ओर निशाना साधा। राम तीर छोड़ते, इससे पहले ही समुद्र देव सामने प्रकट हो गए और बोले, "हे ब्रह्मांड के स्वामी, मुझे क्षमा करें। आपको प्रतीक्षा करनी पड़ी। मैं आपको अनुमति देने वाला कौन होता हूँ ? आप मुझ पर पुल बनाइये और लंका पहुँचिये।'

समुद्र देवता की बात सुन राम ने तत्काल अपनी सेना को समुद्र पर पुल बनाने का आदेश दिया।

इसी घटना को लेकर तुलसीदास जी ने यह दोहा लिखा था -

बिनय न मानत जलधि जड़, गए तीन दिन बीत।
बोले राम सकोप तब, भय बिन होय न प्रीत।।

English Translation : http://sashankexpress.blogspot.in/2016/02/046-bhaya-bin-hot-na-preet.html

source: वाह  ज़िन्दगी वह , Ekalavya Education Foundation - 
By: Sunil Handa - http://www.amazon.in/Wah-Zindagi-SUNIL-HANDA/dp/9350484064

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